भारत में युगल थेरेपी रिट्रीट्स: यात्रा के दौरान अपने रिश्ते को सुधारें — जब हम गए, तो वास्तव में क्या हुआ#
सच कहूँ तो, हमने भारत की ट्रिप इसलिए बुक नहीं की कि सब कुछ एकदम बढ़िया था। हम थक चुके थे, वही झगड़े बार-बार दोहराते रहते थे; मुझे छोटी-छोटी बातों पर चिढ़ हो जाती—जैसे किसने पानी का फ़िल्टर नहीं भरा—और वह चुप हो जाता... यानी, बहुत ज़्यादा चुप। हम मज़ाक में कहते थे, 'चलो किसी खूबसूरत जगह जाकर इसे ठीक कर लेते हैं,' फिर, उह, सच में कर दिया। भारत। कपल्स थेरेपी रिट्रीट। धूप, कठिन बातचीतें और चाय। इंस्टाग्राम वाले संस्करण जैसा तो बिल्कुल नहीं, पर कहीं ज़्यादा असली।¶
भारत क्यों, और यात्रा के दौरान थेरेपी रिट्रीट क्यों?#
हम दोनों को भारत जाने की इच्छा बरसों से थी। पता है, कुछ जगहें सालों तक तुम्हारे Pinterest बोर्ड्स पर जैसे अटकी रहती हैं और तुम बार‑बार कहते रहते हो, 'कभी न कभी'? वो रंग, मंदिर, योग, खाना, और भारत की वो बिना चमक‑दमक की, थोड़ी खुरदरी मगर ईमानदार सच्चाई। और हाल ही में, यानी 2024 से 2025 के बीच, मेरी फ़ीड 'हीलिंग हॉलीडेज़' और ऐसा कपल ट्रैवल से भरने लगी जो सिर्फ़ स्पा‑डेज़ नहीं, बल्कि सचमुच चिकित्सात्मक काम था। लोग गोवा में गॉटमैन‑स्टाइल वर्कशॉप्स कर रहे थे, केरल में काउंसलिंग के साथ आयुर्वेद प्रोग्राम्स, ऋषिकेश के पास साइलेंट मेडिटेशन के साथ गाइडेड चेक‑इन्स। ये पूरा एक मूड था। यात्रा और रिश्तों की मरम्मत का मेल। 'रिलेशनशिप सब्बैटिकल' जैसा शब्द इधर‑उधर उछाला जा रहा था, जो थोड़ा ड्रामैटिक लगा, पर... कुछ हद तक ठीक भी। तो हमने बचत की, बुक किया, वादा किया कि हम सचमुच मौजूद रहेंगे और अपनी भावनाओं को अनदेखा करके गायब नहीं होंगे। और हम निकल पड़े।¶
हम कहाँ गए (और हमने इन जगहों को क्यों चुना)#
हमने इसे तीन एहसासों में बाँटा: गोवा — सूरज, थोड़ी-सी संरचना वाली थेरेपी, और समुद्र; ऋषिकेश — योग, नदी की शांति, और वह एहसास कि "हम बहुत छोटे हैं, पर ठीक हैं"; केरल — आयुर्वेद और वह तरह का धीमापन जो सिर्फ तब मिलता है जब रात में बारिश होती है और ताड़ के पेड़ हवा से बहस कर रहे होते हैं। यह त्रिकोण हमारे लिए जम गया। यह एक क्रम-सा लगा: ढीला पड़ना, अपनी बातों पर नज़र डालना, सुकून देना। हमने सब कुछ ठूँसने की कोशिश नहीं की — न कोई गोल्डन ट्रायएंगल की दौड़, न 10 दिनों में 10 शहरों वाली बेतुकी भागदौड़। ज़्यादा धीमा, ज़्यादा कोमल।¶
सबसे पहले गोवा: हम डाबोलिम पहुँचे देर दोपहर, वह शहद-सी रोशनी ताड़ के पेड़ों से टकराकर लौट रही थी। जो रिट्रीट हमने चुना था, वह छोटा था — अधिकतम आठ जोड़े — जिसे मुंबई के दो थेरेपिस्ट चलाते थे; आप समझ जाते थे कि वे ठोस फ्रेमवर्क्स में प्रशिक्षित हैं, लेकिन बोलते बिल्कुल आम इंसानों की तरह। सुबहें ग्रुप वर्कशॉप्स होती थीं (सोचिए ऐसी कम्युनिकेशन ड्रिल्स जो घिसी-पिटी न लगें), दोपहर में बीच और फुर्सत, शाम को वैकल्पिक चेक-इन। हम अश्वेम के पास ठहरे, जहाँ वाइब बागा या कलंगुट से ज्यादा शांत है। रेत इतनी मुलायम कि दिमाग को आखिरकार ढीला पड़ने का इशारा मिल गया।¶
फिर ऋषिकेश। हम मुंबई से देहरादून उड़े (जॉली ग्रांट एयरपोर्ट प्यारा-सा और काफ़ी छोटा है), गंगा तक जाने के लिए एक कैब पकड़ ली। ऋषिकेश मेरी कल्पना से ठंडा और हरा-भरा था, इंस्टाग्राम जितना चमकीला नहीं, पर ज़्यादा जीवंत। हमारे दिन सूर्योदय योग, नदी किनारे टहलना, और बड़े-बड़े बोधि वृक्षों के नीचे अनपेक्षित रूप से कोमल बातचीतों का मिश्रण थे। याद है, किसने पानी की बोतल नहीं लाई, इस पर हमारी एक बेवकूफ़ी भरी लड़ाई हो गई। मैं और वो बीस मिनट तक चुप रहे। फिर हमने वह सुनने वाला अभ्यास किया जो हमें गोवा में सिखाया गया था—एक व्यक्ति 3 मिनट बोलता है, दूसरा बस वही लौटाकर कहता है, कुछ ठीक करने की कोशिश नहीं—और कुछ हल्का-सा बदल गया। कोई बड़ी आतिशबाज़ी नहीं, बस... नरमी। थोड़ी-सी सहजता।¶
आखिर में केरल: कुछ दिन कोवलम के पास, फिर अंदरूनी हिस्सों में बैकवॉटर्स की ओर। हमने 4 दिन का आयुर्वेद कार्यक्रम किया, जो—ध्यान रहे—सिर्फ मालिश नहीं होता। इसमें जड़ी-बूटी के तेल, आहार में काफी दमदार बदलाव, और वास्तव में डॉक्टर से परामर्श शामिल होते हैं, जो आपसे नींद, पाचन, मूड, तनाव के बारे में पूछते हैं। हमारी योजना में एक काउंसलिंग सत्र भी शामिल था, जिसमें थेरेपिस्ट ने हमारे तंत्रिका तंत्र और हमारी बेमतलब, बार-बार होने वाली तकरारों के बीच की कड़ियाँ जोड़ीं। केरल का एहसास औषधीय था, जैसे गोवा आलस्यभरा है और ऋषिकेश आध्यात्मिक। और खाना भी। हे भगवान, वे करियाँ। और रात की बारिश की आवाज़ ऐसी लगती थी जैसे कोई छत पर मखमल बिछा रहा हो।¶
थेरेपी वाला हिस्सा — वास्तव में क्या होता है (और क्या इससे मदद मिली?)#
मुझे डर था कि हमारा 'कपल्स रिट्रीट' ग्रुप ओवरशेयर का तमाशा बन जाएगा. ऐसा नहीं हुआ. सब कुछ व्यवस्थित था. हमने कुछ क्लासिक चीज़ें कीं: 'स्टेट ऑफ द यूनियन' चेक-इन, जिसमें आप बताते हैं कि क्या अच्छा चल रहा है और क्या मुश्किल है; मुद्दे बिना डरावना ड्रामा खड़ा किए उठाने की 'सॉफ्ट स्टार्ट‑अप' प्रैक्टिस; अटैचमेंट स्टाइल्स की बेसिक बातें; और एक एक्सरसाइज़ जिसमें आप लड़ाइयों को उल्टा मैप करते हैं और ट्रिगर के पीछे वाला ट्रिगर ढूँढ़ते हैं. जैसे, बात उस बेवकूफ पानी के फिल्टर की नहीं थी. बात थी खुद को अनदेखा महसूस करने की. एक दोपहर, हमारे थेरेपिस्ट ने हमें 20 मिनट अलग‑अलग बैठकर ऐसा किस्सा डायरी में लिखने को कहा जो हमने दूसरे को कभी नहीं बताया था, और फिर उसे सांझ के समय बीच पर ज़ोर से पढ़ने को. मैं रो पड़ी. वह रो पड़ा. हम दोनों रो पड़े. और फिर हमने पानी पुरी खाई और हँसे, क्योंकि हमारे चेहरे सूजे हुए और मज़ाकिया लग रहे थे.¶
यह कोई चमत्कारी जादू नहीं है। हम परफेक्ट कम्युनिकेटर्स नहीं बन गए। लेकिन भीतर की रक्षात्मकता थोड़ी कम हो गई। हमने जुड़ाव के छोटे-छोटे प्रयासों का अभ्यास किया — अरे, उस कमाल के सूर्यास्त को देखो, या क्या तुम बिना किसी वजह के मेरा हाथ थामोगे — और भारत में, जहाँ सब कुछ शोरगुल भरा, रंग-बिरंगा, दिल तोड़ देने वाला और पवित्र है, वे छोटे-छोटे प्रयास ऐसे लगते थे जैसे कोई दरवाज़ा खुल रहा हो। हमारे झगड़े खत्म नहीं हुए हैं। लेकिन उनकी धार अब इतनी तीखी नहीं रही।¶
वीज़ा, पैसे, फ़ोन — 2025 की वे चीज़ें जिन्हें आपको जाने से पहले सच में जानना चाहिए#
ठीक है, थोड़ा बोरिंग लेकिन बहुत ज़रूरी। 2025 में ज़्यादातर यात्री पर्यटन के लिए भारत के ई-वीज़ा सिस्टम का ही इस्तेमाल करते हैं। ऑनलाइन आवेदन करें (सिर्फ आधिकारिक वेबसाइट पर!), और इसे आख़िरी समय तक टालें नहीं। प्रोसेसिंग तेज़ भी हो सकती है - कुछ दिनों में - लेकिन अगर आपका शेड्यूल तंग है तो जोखिम न लें। अपनी नागरिकता और यात्रा योजना के अनुसार आप 30 दिन, 1 वर्ष, या 5 वर्ष की मल्टीपल-एंट्री अवधि चुनेंगे। शुल्क देश और वीज़ा प्रकार के हिसाब से बदलता है, कोई एक तय रकम नहीं होती। वीज़ा का प्रिंट निकालें और एक डिजिटल कॉपी भी साथ रखें। इसके अलावा, पूर्वोत्तर के कुछ क्षेत्रों और सीमावर्ती इलाकों में विशेष परमिट (Protected Area/Restricted Area Permit) की ज़रूरत होती है; गोवा/ऋषिकेश/केरल के लिए यह लागू नहीं है, लेकिन अगर आप अरुणाचल, सिक्किम के कुछ हिस्सों या अंडमान के बारे में सोच रहे हैं तो ध्यान रखें। COVID परीक्षण की अनिवार्यता बहुत पहले ही हटा दी गई थी और 2025 में प्रवेश के लिए कोई नियमित परीक्षण नहीं चाहिए; लेकिन अगर आप हाल ही में किसी येलो फीवर प्रभावित देश में रहे हैं, तो उसका प्रमाणपत्र अभी भी ज़रूरी है। एक और प्रशासनिक बात: होटल डिजिटल "Form C" रजिस्ट्रेशन पूरा करने के लिए आपका पासपोर्ट माँगेंगे - यह सामान्य है। घबराएँ नहीं।¶
पैसे के मामले में, अब भारत में डिजिटल भुगतान का जबरदस्त बोलबाला है। UPI हर जगह है — छोटी चाय की दुकानों, टुक-टुक/ऑटो, और फैंसी रिसॉर्ट्स तक। 2025 तक, कई बैंक और फिनटेक विदेशी यात्रियों को बड़े हवाई अड्डों या पार्टनर काउंटरों पर टूरिस्ट UPI वॉलेट सेट अप करने देते हैं, ताकि बिना भारतीय बैंक खाते के भी आप टैप/स्कैन कर सकें। यह शहर-दर-शहर रोलआउट हो रहा है, इसलिए लैंड करने से पहले ताज़ा जानकारी जांच लें, और बैकअप कार्ड के साथ कुछ नकद रखें। एटीएम ठीक हैं, लेकिन कुछ केवल 2000 रुपये के नोट ही निकालते हैं, जो परेशान कर सकता है। साथ ही, हवाई अड्डे पर लोकल eSIM या SIM ले लें; पासपोर्ट के साथ eKYC प्रक्रिया पहले से अधिक सुगम हो गई है। टैक्सियों और रिट्रीट कोऑर्डिनेटरों के लिए WhatsApp आपकी लाइफ़लाइन होगा। एक मल्टी-प्लग एडेप्टर साथ रखें। और, माफ़ कीजिए, लेकिन छोटे छुट्टे साथ रखें — टिप्स, मंदिर, चाय के लिए। यह मायने रखता है।¶
2025 में सुरक्षा, ऋतुएँ और स्वास्थ्य (आपको डराने के लिए नहीं, बस सीधी बात)#
भारत एक जगह नहीं है। यह कई जगहों से बना है। इसलिए सुरक्षा स्थान और मौसम के साथ बदलती रहती है। गोवा आरामदेह और सहज लगा, लेकिन समुद्र तटों पर रिप करंट्स का ध्यान रखें और जब आप दोनों पानी में दौड़ते हुए जाएँ तो फोन रेत पर मत छोड़िए, क्योंकि हाँ, मौके पर लोग चीजें उठा लेते हैं। ऋषिकेश का माहौल सुरक्षित-सा लगा, हालांकि राफ्टिंग नदी के स्तर और मौसम पर निर्भर करती है — लाइसेंस प्राप्त ऑपरेटरों और उपकरण की जाँच करें। मॉनसून में केरल सपनीला लगता है, लेकिन सड़कों पर अचानक पानी भर जाता है, तो कभी-कभी यात्रा समय मज़ाक बन जाता है। 2025 की बड़ी प्रवृत्ति: हीटवेव और वायु गुणवत्ता चेतावनियाँ, खासकर मॉनसून से पहले उत्तर भारत और दिल्ली के आसपास। अगर आपके सफर में दिल्ली स्टॉपओवर शामिल है, तो एक N95 साथ रखें और AQI उछल जाए तो इनडोर दिनों की योजना बनाएँ। हाइड्रेट रहिए जैसे यह आपका काम हो। मॉनसून में डेंगू भी सामने आता है; मच्छर भगाने वाला रिपेलेंट वैकल्पिक नहीं है। ज़्यादातर यात्रियों के लिए नल का पानी पीने योग्य नहीं है — होटल का फ़िल्टर किया हुआ या बोतलबंद पानी इस्तेमाल करें। और हाँ, जोड़े जो ज़ोर से लड़ते हैं, नई जगहों पर कभी-कभी भावनात्मक रूप से कच्चा-सा महसूस करते हैं; एक कोड शब्द तय कर लें जिसका मतलब हो “हम रुकते हैं और साँस लेते हैं”, इससे पहले कि आप सार्वजनिक जगह पर एक-दूसरे पर फट पड़ें। यह बात अरामबोल के एक बाज़ार में हमने कठिन तरीके से सीखी, जहाँ हम दोनों भूख के कारण चिड़चिड़े और थोड़े मूर्खतापूर्ण थे.¶
हम कहाँ ठहरे और हमें वास्तव में कितना खर्च हुआ#
2025 में कीमतें… कहीं ऊँची, कहीं कम, लेकिन हमारी हकीकत यह रही। गोवा में अश्वेम/ मंद्रेम के पास, नाश्ते सहित बुटीक स्टे शोल्डर सीज़न में करीब 7,000–14,000 INR प्रति रात थे, दिसंबर/जनवरी की पीक में इससे अधिक। हमारे थेरेपी रिट्रीट शुल्क में वर्कशॉप्स, कुछ भोजन और एक 1:1 सत्र शामिल था — सोचिए प्रति कपल एक हफ्ते के लिए 80,000–140,000 INR, इस पर निर्भर करता है कि क्या-क्या शामिल है और आवास कितना शानदार है। ऋषिकेश में विकल्पों का दायरा था: नदी-दृश्य वाले होटल 5,000–10,000 INR प्रति रात; योग आश्रम दान-आधारित थे या साधारण कमरे और भोजन के लिए लगभग 1,500–3,000 INR प्रति व्यक्ति प्रति दिन। लग्ज़री वेलनेस? हिमालय में अनंदा की दरें ऊँची थीं — यह स्प्लर्ज है — पैकेज प्रोग्राम्स के साथ 45,000–90,000 INR प्रति रात तक जा सकते हैं। देहरादून में सिक्स सेंसिस वना काफी प्रीमियम है, फुल-बोर्ड वेलनेस और रोज़ाना थेरेपी के साथ — प्रोग्राम सीज़न में प्रति रात करीब 70,000–100,000+ INR की उम्मीद रखें। केरल में बढ़िया मध्य विकल्प मिला: सोमथीरम या कैराली जैसे आयुर्वेद रिसॉर्ट्स में पैकेज आपके उपचार प्लान की तीव्रता पर निर्भर करते हुए लगभग 12,000–35,000 INR प्रति रात से शुरू होते हैं। होमस्टे अब भी नगीने हैं 3,000–6,000 INR में। हमने मिलाकर किया: एक स्प्लर्ज वाला हफ्ता, दो सामान्य हफ्ते। मेरी स्प्रेडशीट थोड़ी रोई, पर हमारा रिश्ता नहीं, तो… वर्थ इट।¶
खाने-पीने के रोमांचक किस्से (और दो-एक छोटी-मोटी नोकझोंकें जिन पर बाद में हम हँसे)#
खाना एक छुपी हुई थेरेपी था। गोवा में हमने एक फिश थाली खाई जो किसी मोलभाव जैसी लगी—आखिरी टुकड़ा किसे मिले, कौन जल्दी खाए—फिर हमने बाँटा, और हम धीमे पड़ गए। ऋषिकेश ज़्यादातर शाकाहारी है, जो भारी बातचीत के बाद की सुबहों के लिए बिल्कुल सही था। मसाला चाय जान बचाती है, कसम से। केरल में हमने सद्य खाया, केले के पत्ते पर परोसा जाने वाला पारंपरिक भोज, और मैंने ऐसा अचार चखा जिसने मुझे अब तक पसंद किए हर चटनी-मसाले के बारे में फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया। नाश्ते सपनों जैसे थे: अप्पम के साथ स्ट्यू, इडियप्पम, नारियल की चटनी। एक रात हम दोनों चिड़चिड़े थे और तपोवन के एक छोटे से कैफ़े में जा पहुँचे, जहाँ अगली मेज़ पर एक बच्चा होमवर्क कर रहा था। हमने राजमा चावल मंगाए और चुपचाप यह तय किया कि "हमेशा" शब्द को हथियार की तरह इस्तेमाल करना बंद करेंगे। खाना यादों से जुड़ा होता है, हमेशा हमेशा, और अब इलायची की खुशबू मुझे राहत जैसी लगती है.¶
घूमना-फिरना और बुकिंग से जुड़े टिप्स, जिनसे वाकई हमारी बचत हुई (और हाँ, थोड़ी-बहुत नोक-झोंक भी हुई)#
हम गोवा के लिए उड़ान से पहुँचे, देहरादून के लिए एक घरेलू फ्लाइट ली, फिर खिड़कियों के बाहर नज़ारे तेज़ी से गुजरते हुए देखने के लिए वंदे भारत से ट्रेन पकड़कर दिल्ली लौट आए। वंदे भारत ट्रेनें भारतीय मानकों के हिसाब से चमकदार और आरामदायक हैं, लेकिन अगर साथ-साथ सीटें चाहिए तो IRCTC पर जल्दी बुक करें। गोवा में Uber/Ola उतने भरोसेमंद नहीं हैं; GoaMiles या प्री-पेड टैक्सियों का इस्तेमाल करें। या अगर आत्मविश्वास हो तो स्कूटर किराए पर लें — हमने नहीं लिया क्योंकि ट्रैफिक की अफरातफरी और गड्ढों का मेरा डर। ऋषिकेश में पैदल चलना आम है, बस बंदरों से सावधान रहें। केरल में हमने दो-तीन दिनों के लिए ड्राइवर रखा क्योंकि मानसून में समय का कोई भरोसा नहीं रहता। कुछ बुकिंग टिप्स जो वाकई काम आईं: फाइनल करने से पहले त्योहारों की तारीखें जरूर चेक करें (नए साल के आसपास गोवा के दाम बहुत तेज़ी से उछल जाते हैं), योग/राफ्टिंग के समय बदलें तो ऋषिकेश में बफर दिन जोड़ें, और केरल को ज़्यादा प्लान मत करें — वहाँ मौसम ही तय करता है। 2025 में ट्रैवल इंश्योरेंस वैकल्पिक नहीं है, खासकर अगर आप एडवेंचर वाली चीज़ें कर रहे हैं।¶
- रिट्रीट से पहले ट्रेनों और उड़ानों की बुकिंग कर लें। थेरेपी की तारीखें तय होती हैं, लेकिन यात्रा गड़बड़ हो सकती है, इसलिए पहले मुश्किल हिस्सों को पक्का कर लें।
- रास्ते के लिए होटल का WhatsApp इस्तेमाल करें। छोटी गलियों में Google Maps हमेशा सटीक नहीं होता; स्थानीय लोकेशन पिन अनावश्यक बहस से बचाते हैं।
- ऑफलाइन बैकअप रखें। ई-वीज़ा PDF, पासपोर्ट स्कैन, रिट्रीट का कार्यक्रम। जब आप खो जाते हैं, तो फोन की बैटरी ठीक उसी समय खत्म हो जाती है।
क्या हम वापस जाएंगे? अगली बार हम क्या अलग करेंगे#
संक्षिप्त जवाब: हाँ। लंबा जवाब: हमने सीखा कि हम एक साथ पूरी रफ्तार से और पूरी भावनाओं के साथ नहीं चल सकते। अगली बार हम कम जगहें बदलेंगे—शायद सिर्फ गोवा और कोई पहाड़ी कस्बा। हर भारी थेरेपी वाले दिन के बाद मैं एक दिन बिना किसी योजना के बिताऊँगा। साथ ही, हम एक बिल्कुल हल्की-फुल्की चीज़ जोड़ेंगे—जैसे कुकिंग क्लास, हैंडपैन वर्कशॉप वगैरह—ताकि मस्ती याद रहे। हम कम कपड़े और ज़्यादा धैर्य लेकर जाएँगे। और हम ऐसा रिट्रीट चुनेंगे जिसमें फॉलो-अप योजना हो—कुछ एक महीने बाद ज़ूम चेक-इन देते हैं, जो तब बहुत मायने रखता है जब सामान्य जीवन धड़ल्ले से लौट आता है और आपके पुराने पैटर्न दरवाज़ा खटखटाने लगते हैं। भारत ने हमें ‘ठीक’ नहीं किया। लेकिन भारत ने हमें दयालु होने का अभ्यास करने की जगह दी, उन कमरों में जहाँ अगरबत्ती और ईमानदारी दोनों मायने रखते हैं। यात्रा और थेरेपी ने एक-दूसरे को पोषित किया, और हम घर लौटे तो कम भंगुर, ज़्यादा अपने जैसे।¶
कुछ रैंडम बातें जो काश किसी ने मुझे हमारे जाने से पहले बता दी होती#
उम्. जितना आप सोचते हैं उससे बहुत कम सामान पैक करें, और एक पावर बैंक, ऐसा मच्छर भगाने वाला स्प्रे/क्रीम लाएँ जिसमें पछतावे जैसी बदबू न हो, और एक टोट बैग साथ रखें उन मंदिरों के लिए जहाँ जूते दरवाज़े पर उतारने पड़ते हैं। गोवा के बीच के हॉकर दोस्ताना होते हैं पर जिद्दी — एक ठोस ना काम कर जाती है। ऋषिकेश के पुलों पर भीड़ बहुत घनी हो जाती है; अगर आपको अफरातफरी से नफ़रत है, तो सुबह-सुबह पार करें। केरल का मानसून रोमांस भी है और देरी भी, तो अपने कैलेंडर में धैर्य के लिए जगह रखें। आयुर्वेदिक डिटॉक्स आपको भावुक कर सकता है — यह सामान्य है। और अपने रिश्ते की तुलना रिट्रीट पर आए दूसरे कपल्स से मत करें। हमने एक बार किया था और बस बुरा लगा। आप वे नहीं हैं। आप आप हैं। और आख़िर में: स्नैक्स साथ रखें। कुछ लड़ाइयाँ बस लो ब्लड शुगर होती हैं जो फैंसी कॉस्ट्यूम पहनकर आती हैं।¶
अगर आप इसके बारे में सोच रहे हैं… बस जाएँ, लेकिन धीरे से#
सफ़र के दौरान थेरेपी करना अजीब भी है और खूबसूरत भी। भारत आपको विनम्र बना देता है, बहुत विशाल है, और हमेशा आसान नहीं होता, जो ईमानदारी से कहूँ तो हमारे रिश्ते से आईने की तरह मेल खाता था। हम चाय और गहरी समझ के लिए आए थे और दोनों मिले, पर असमान मात्रा में। और यह ठीक है। अपना मार्ग ऊर्जा के इर्द-गिर्द बनाएँ, सिर्फ़ दर्शनीय स्थलों के नहीं। गंगा को आपको धीमा करने दें, केरल को आपको खिलाने दें, गोवा को आपके पैरों पर उठती झाग पर हँसना याद दिलाने दें। वीज़ा समय से पहले जाँच लें, मौसम पर नज़र रखें, 2025 की स्वास्थ्य सलाहों पर ध्यान दें, और अपने यक़ीन से ज़्यादा अपनी जिज्ञासा साथ लाएँ। अगर आपको ऐसी और कहानियाँ चाहिएँ या अपनी थोड़ी-सी अव्यवस्थित, उम्मीद है कि उपचारकारी साहसिक यात्रा की योजना के लिए आइडिया चाहिए, तो मुझे AllBlogs.in पर अच्छी चीज़ें मिलती रहती हैं। वहाँ जाकर देखें। फिर भारत जाकर देखें। और शायद एक-दूसरे का थोड़ा नरम रूप भी।¶